हे वास्तुविद, हे कलाश्रेष्ठ ! तुम नया शहर संवेदनशील बनाना। हे वास्तुविद, हे कलाश्रेष्ठ ! तुम नया शहर संवेदनशील बनाना।
चुपके से पितृसत्ता की दोहरी भेंट, हर दिन अब चढ़ती जाती। चुपके से पितृसत्ता की दोहरी भेंट, हर दिन अब चढ़ती जाती।
शहर से गाँव तक उग आया है कांक्रीटों का घना जंगल। शहर से गाँव तक उग आया है कांक्रीटों का घना जंगल।